फिर जोर पकड़ने लगी पृथक मिथिला राज्य के गठन की मांग।

0

फिर जोर पकड़ने लगी पृथक मिथिला राज्य के गठन की मांग।

चिर प्रतीक्षित मांग के समर्थन में कमर कसने लगा विद्यापति सेवा संस्थान।

दरभंगा : उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल के विभाजन से जुड़ी खबरों की अटकलबाजियों के बीच पृथक मिथिला राज्य के गठन की चिरप्रतीक्षित मांग एक बार फिर से जोर पकड़ने लगी है। विद्यापति सेवा संस्थान के महासचिव डॉ बैद्यनाथ चौधरी बैजू ने मंगलवार को कहा कि मिथिला के सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक, राजनैतिक, शैक्षणिक, साहित्यिक और भाषा के क्षेत्र में समग्र विकास के लिए पृथक मिथिला राज्य का गठन निहायत जरूरी है। क्योंकि सांस्कृतिक संपन्नता के लिए दुनिया भर में विख्यात मिथिला आज सरकारी अपेक्षाओं के कारण लगातार आर्थिक पिछड़ेपन का शिकार होने को मजबूर हो रहा है । नतीजा है कि जिस क्षेत्र के गांव-गांव में कभी शिक्षा का केंद्र हुआ करता था, आज वहां के छात्र पलायन को मजबूर हो रहे हैं। बाढ़ की जिस विभीषिका को हमारे पुरखों ने देखा। आज भी मिथिला के लोग इससे तबाह हो रहे हैं और आने वाली पीढ़ी भी इससे अछूती नहीं रहेगी। यह निर्विवाद सत्य जान पड़ता है। क्योंकि बाढ़ के निदान का भरोसा देकर हमेशा से मिथिला को सिर्फ और सिर्फ ठगा जाता रहा है।
उन्होंने कहा कि भाषा, लिपि, क्षेत्र, जनसंख्या और ऐतिहासिक पृष्ठभूमि सरीखे हर मानक पर खरा उतरते हुए मिथिला पूर्ण राज्य बनने का अधिकार रखता है और यह समय की मांग भी है। उन्होंने कहा कि पृथक मिथिला राज्य के गठन सहित अन्य मांगों के समर्थन में अखिल भारतीय मिथिला राज्य संघर्ष समिति के तत्वावधान में जल्दी क्रमबद्ध आन्दोलन की घोषणा की जाएगी। जिसके तहत सड़क से संसद तक अपनी मांग के समर्थन में आवाज बुलंद करने के साथ ही गांव की गलियों से लेकर शहर के चौराहों तक जनजागरण अभियान चलाया जाएगा।
मैथिली अकादमी के पूर्व अध्यक्ष पं कमलाकांत झा ने कहा कि मैथिली भाषा-साहित्य का विकास संरक्षण के अभाव में प्रभावित हो रहा है। मिथिला की अपनी सबसे पुरानी मैथिली भाषा है जिसकी अपनी लिपि मिथिलाक्षर आज भी जीवित है। बावजूद इसके मैथिली के प्रति सरकारी स्तर पर चल रहे षडयंत्र के कारण यह संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल होने के बाद भी राजकाज और शिक्षा की भाषा बनने से वंचित है।
डाॅ बुचरू पासवान ने कहा कि जब इस क्षेत्र पर बाढ़ का कहर नहीं होता तो उस समय इस क्षेत्र पर सूखे का प्रहार होता है। बावजूद इसके मिथिला सूखा और बाढ़ कि कोढ का निरंतर शिकार होता आ रहा है और इसके आस पास आंसू पोछने वाला कोई नहीं है। जहां एक और खेती चौपट हो गई है, वहीं मिथिला के मजदूर पलायन करने को विवश हो रहे हैं। रोजगार के अभाव का दंश झेलने के लिए भी यह क्षेत्र कम मजबूर नहीं हो रहा। चीनी मिल, पेपर मिल, जूट मिल आदि यहां कबार का ढेर मात्र बने हुए हैं। मिथिला की प्रतिभा रोटी के लिए विभिन्न प्रदेशों में मजदूरी करने को विवश है। इसका एकमात्र निदान पृथक मिथिला राज्य का गठन है।
संस्थान के सचिव प्रो जीव कांत मिश्र ने मिथिला के सर्वांगीण विकास के लिए पृथक मिथिला राज्य के गठन को समय की मांग बताते कहा कि कोरोना संकट की घड़ी में इसकी अनिवार्यता जग जाहिर हो चुकी है। उन्होंने कहा कि सरकारी उपेक्षाओं के कारण लगातार आर्थिक पिछड़ेपन का शिकार होने को मजबूर हो रहे इस क्षेत्र के लोगों के घरमुँहा पलायन ने सबकी पोल खोलकर रख दी है।
डाॅ महेन्द्र नारायण राम ने कहा कि संविधान की आठवीं अनुसूची में सम्मिलित बिहार की एकमात्र भाषा मैथिली की प्रगति में सोची-समझी राजनीति के तहत बाधा उत्पन्न की जा रही है। इसे राज-काज की भाषा बनाये जाने में कोताही बरती जा रही है और मैथिली के शिक्षकों की बहाली में बार-बार अवहेलना की जा रही है।
मीडिया संयोजक प्रवीण कुमार झा ने बताया कि अभियान के दौरान मिथिला क्षेत्र अंतर्गत ईस्ट वेस्ट कॉरिडोर के लगभग 500 किलोमीटर क्षेत्र में एग्रीकल्चर काॅरिडोर बेस्ड विकास के तहत नेशनल एग्रीकाॅरिडोर की स्थापना करते हुए विभिन्न एग्रीकल्सटर के प्रोत्साहन के लिए एग्रोबेस्ड आईटी एवं बायोटेक्निकल एजुकेशनल हब बनाने सहित मिथिला मखान के उत्पादन एवं निर्यात के लिए भारत सरकार के कृषि मंत्रालय के अधीनस्थ नेशनल हॉर्टिकल्चर बोर्ड एवं वाणिज्य मंत्रालय के अधीनस्थ एग्रीकल्चर एंड प्रोसेस्ड फूड एक्सपोर्ट डेवलपमेंट अथॉरिटी में सूचीबद्ध करते हुए इसे प्राथमिकता देने के लिए भी सरकार से अनुरोध किया जाएगा।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here