न्यूज़ डेस्क।
मुज़फ़्फ़रपुर।
पूर्व रक्षा मंत्री जॉर्ज फर्नांडिस का जब भी जिक्र होगा। मुजफ्फरपुर का नाम जरूर याद आएगा। आपातकाल हटने के बाद जेल में रहते हुए जिस सीट से वे सांसद बने थे, वहीं से वे अपने जीवन का आखिरी चुनाव हार गए। दुर्भाग्य तो देखिए उस चुनाव में उन्हें अपनी ही पार्टी से बगावत कर निर्दलीय चुनाव लड़ना पड़ा था। जॉर्ज फर्नांडिस ने 1977 का लोकसभा चुनाव जेल में रहते हुए ही मुजफ्फरपुर लोकसभा सीट से रिकॉर्ड मतों से जीता। इसके बाद वे जनता पार्टी की सरकार में उद्योग मंत्री बनाए गए। जब जनता पार्टी में टूट हुई तो जॉर्ज ने समता पार्टी का गठन किया और बीजेपी का समर्थन किया। वो विद्रोही नेता, जिनकी एक आवाज पर हजारों गरीब-गुरुबा जमा हो जाते थे। कहा जाता है कि जॉर्ज ने अनेकों लोगों को राजनीति में मौका दिया। अपनी पार्टी में तो लोग उन्हें चाहते ही थे, विरोधी भी उनके कायल थे। मगर किसको पता था कि एक दिन अपने ही लोग जॉर्ज से इस कदर बेगाने हो जाएंगे कि उन्हें लोकसभा के टिकट के लिए अपने बनाए और तैयार किए हुए नेताओं का मोहताज होना पड़ेगा। दरअसल जॉर्ज चाहते थे कि 2009 में भी वह जनता दल (युनाइटेड) के टिकट पर मुजफ्फरपुर से चुनाव लड़े, लेकिन पार्टी के नई पीढ़ी के नेतृत्व ने उनको उनकी उम्र और बीमारी का हवाला देकर टिकट नहीं दिया। मजबूरन उन्होंने अपनी ही पार्टी से बगावत कर दी और निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर मुजफ्फरपुर से मैदान में कूद पड़े। इंदिरा और संजय गांधी के नाक में दम करने वाले शख्स थे। जाति और समुदाय में बंटी राजनीति में जॉर्ज को इस बार मुंह की खानी पड़ी। यह भी विडम्बना ही है कि जिस मुजफ्फरपुर से उन्होंने जेल में रहते हुए चुनाव जीतकर इतिहास रचा था उसी मुजफ्फरपुर से वे अपने राजनीतिक जीवन का अंतिम चुनाव हार गए।
