निशांत झा ( संपादक , न्यूज़ ऑफ मिथिला )
आज सुबह सुबह अखिल भारतीय मिथिला संघ के अध्यक्ष श्री विजय चंद्र झा (चाचा जी) जी का कॉल आया था। चाचा जी को प्रणाम किए उनका आशीर्वाद मिला।
उसके बाद चाचा जी बोले “अहाँ लोकनि क्रिटिसाइज करइ छियै खाली। कार्यक्रम मे अबितो नहि छियैक.. हलाकि कार्यक्रम में जाना कम कर दिया हुँ. . सिद्धांत बदल चुका हुँ जहाँ से आमंत्रण न मिलें वहाँ नही जाता हुँ। कार्यक्रम में नहीं जाने का एक वजह बुराड़ी वाले विद्यापति समारोह में दो प्लेट माँछ भात खाने के बाद से मेरा पेट झड़ना भी था।
कोई यह मत कह दीजिएगा कि व्यक्तिगत कार्यक्रम थोड़बे रहय जे अहाँके न्यौता देल जायत। ये मेरा स्वाभिमान है और मेरा मन है जहाँ दिल करेगा वही जाऊँगा और किसी खास कार्यक्रम में जाने से हम असली मिथिला मैथिली के प्रणेता और अभियानी हो जायेंगे ऐसा नहीं है। मुझ जैसे लोगों को कोई मैथिली आंदोलन का पाठ न पढ़ाए। हम उस गांव में पैदा हुए जहाँ बच्चा पैदा होते ही आंदोलन सीख जाता है। सहोड़ा गांव से ही मिथिला आंदोलन के सबसे पड़े प्रणेता बैजू चौधरी हैं। मैथिली आंदोलन पर उनकी भूमिका लिखूं तो एक दो किताब भी कम पड़ जाएँगे।
अब आते हैं चाचा जी के विषय पर… चाचा जी खिसियाए हुए थे इसका एकमात्र कारण है और उनका हमपर खिसियाना बनता भी है। दिल्ली में मिथिला मैथिली संस्था को इस उम्र में भी जिंदा किए हुए हैं जिस उम्र में लोग पोता पोती नाती नतनी में व्यस्त हो जाते हैं। मुझे अखिल भारतीय मिथिला संघ का एक पोस्टर किसी पत्रकार ने भेजा था यह पूछने के लिए कि एही में खाली अहाँ बभने सब छियै कि सोल्कन् सभ कें हक नहि छै. . मैंने जो पोस्टर देखे उसमें नाम कुछ इस प्रकार थे…नीचे दिए पोस्टर में नाम दिख जायेंगे आपको
बद्रीनाथ राय और रामबाबू सिंह छोड़कर बांकी सभी बाभन लोग दिखे इस पोस्टर पर। बद्रीनाथ राय जी को लेकर थोड़ा कन्फ्यूजन था उसे दूर करने के लिए मैंने कवि आदरणीय मनीकांत झा जी से बात की। उनके जवाब से मैं कुछ हद तक संतुष्ट हुआ और जिन पत्रकार ने मुझसे इस बारे में जिकर किया उनको भी मैंने समझा बुझा दिया। बात वहीं पर खत्म हो गई… मैनें बिना सोचे समझे और बिना तथ्यों के किसी के भी बारे में अनाप शनाप नही लिखा है। विजय चंद्र झा व मेरे प्रिय चाचा जी को गुस्सा आना लाजमीं था। विजय चंद्र झा जी का योगदान मिथिला मैथिली के लिए अतुलनीय रहा है। इस उम्र में भी पुरा डटकर रहते हैं… जय जानकी
