राजनीतिक शुद्धता,शालीनता व गंभीरता के प्रतीक रहे उमा बाबू
1995 से 2005 तक हायाघाट विधानसभा से जदयू के प्रत्याशी रहे महामानव प्रो उमाकांत चौधरी
20 नवंबर को उनके पैतृक गांव में प्रतिमा का अनावरण करेंगे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार
दरभंगा,संजय कुमार । मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के साथ कदम से कदम मिलाकर दरभंगा समेत कई जिलों में तत्कालीन समता पार्टी फिर जदयू के संगठन विस्तारक ओजस्वी,तेजस्वी,राजनीतिक शुद्धता,शालीनता व गंभीरता के प्रतीक रहे थे प्रो उमाकांत चौधरी। 30नवंबर 2005 को उमा बाबू सदा के लिए दुनिया छोड़ गए। तब से उनके याद में हर हर साल जयन्ती व पुण्यतिथि मनाया जा रहा है।उमा बाबू के याद में 20 नवंबर को हायाघाट प्रखंड के विशनपुर गांव स्थित माध्यमिक विद्यालय के प्रांगण में स्थापित महामानव के प्रतिमा का अनावरण स्वयं बिहार सरकार के मुखिया नीतीश कुमार करेंगे। जब जब धरा विकल होती, मुसीबत का समय आता, किसी के रूप में कोई महामानव चला आता। हायाघाट प्रखंड के बिशनपुर गांव में 7 जनवरी 1934 को पिता चंद्रकांत चौधरी एवं माता नागो चौधरी के बड़े पुत्र के रूप में जन्मे महामानव प्रो उमाकांत चौधरी हिंदू मुस्लिम एकता अखंडता के आजीवन मिसाल बने रहे। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने जब वर्ष 1994 में समता पार्टी का गठन किया तो उमा बाबू भी कांग्रेस छोड़ दरभंगा में उनके ध्वजारोहण बने,तब से लेकर 2005 तक मिथिलांचल में प्रो उमाकांत चौधरी के देखरेख में ही पहले समता पार्टी फिर जदयू के संगठन का विस्तार होता रहा। सार्वजनिक मंच से मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी उमा बाबू को अपना आदर्श मानते रहे। वर्ष 1995,2000,2005 के दोनों बार हुए विधानसभा चुनाव में हायाघाट विधानसभा से उमा बाबू को ही पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ाया गया। क्षेत्र का दुर्भाग्य रहा कि उमा बाबू जैसे लोकप्रिय,मृदुभाषी,हिन्दू मुस्लिम एकता अखंडता के महानायक चुनाव के तत्कालीन कला कौशल को नहीं अपना सके और हर बार चुनावी मैदान में पराजित होते रहे। वे छल प्रपंच,झूठ घुस की राजनैतिक प्रक्रिया के विपरीत,अनवरत सादगी व विचारधारा की राजनीतिक योग्यता से चुनाव लड़ते रहे। उमा बाबू की प्राथमिक शिक्षा दीक्षा गांव के समीप बसहा विद्यालय से प्रारंभ हुआ। प्राथमिक शिक्षा ग्रहण करने के बाद वे एमएलए एकेडमी से मैट्रिकुलेशन,फिर बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से स्नातक एवं स्नातकोत्तर में डिग्री हासिल किया। बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में हिंदी साहित्य के प्रकांड विद्वान आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी के सानिध्य में ही उन्होंने साहित्यिक शिक्षा में निपुणता हासिल किया। उमा बाबू के सबसे अनुज आत्मज मिथिला विश्वविद्यालय के प्रोफेसर डॉ विनय कुमार चौधरी ‘अजय’ उनके राजनीतिक जीवन में हमेशा ही सारथी के रूप में साथ रहे।उमा बाबू के आदर्श पर चलना ही उनका एकमात्र जीवन का उद्देश्य बच गया है।1994 से वर्षों तक जदयू के अध्यक्ष रहे शंभू नाथ झा ‘फूलबाबू’ के मुताबिक उमा बाबू का सिर्फ व सिर्फ नीतीश कुमार में हि आस्था था।वे वोट के क्रम में लोगों से नीतीश कुमार से जुड़ने और नए बिहार की कल्पना के लिए नीतीश कुमार के हाथ में ही सत्ता की बागडोर सौंपने की बात करते। बतौर फूल बाबू उमा बाबू कहा करते थे “मैं रहूं या ना रहूं नीतीश कुमार के हाथों बिहार का भविष्य सुरक्षित रहेगा”। यह स्मरण वर्षों पुरानी है,तब उर्दू भाषा को द्वितीय राजभाषा का दर्जा दिलाने को लेकर दरभंगा में कार्फू लागू था। उमा बाबू उस समय अल्पसंख्यक बाहुल्य मिल्लत महाविद्यालय में हिंदी के प्राध्यापक के रूप में कार्यरत थे। कार्फू के दिन को याद कर उनके छोटे पुत्र प्रो विनय कुमार चौधरी ‘अजय’ का कहना है हमलोगों के लाख मना करने के बाद कि आप अभी कुछ दिनों कॉलेज ना जाएं।वे एक का भी नही सुने और सिर्फ इतना कह कॉलेज गए कि “कोई तो हो जो भाई से भाई को दूर करने वाले इस आग पर पानी डालकर इसे शांत कर सके”। मिल्लत कॉलेज में प्राध्यापक के रूप में उन्हें कई बार प्रमोशन देकर स्नातकोत्तर विभाग में जाने का प्रस्ताव आया। वे हर बार अपने प्रमोशन को ठुकराते रहे। इसका कारण था , उन्हें हिंदू मुस्लिम दोनों समाज के लोग ही प्रिय थे। पुराने जदयू कार्यकर्ता के मुताबिक चुनाव हारने के बाद जब मायूस कार्यकर्ता उनसे मिलने जाते तो वे खुशी खुशी उनसे मिलते और बात करते, साथ खाना खाते।हर बार यही कहते हार जीत राजनीति का ही अंग है। राजनीति में जीत उतना मायने नहीं रखता,जितना हारकर हम जनता के बीच रह पाते हैं। तत्कालीन समता पार्टी से लेकर जदयू के वे लगातार प्रदेश उपाध्यक्ष के पद पर काम करते रहे और नीतीश कुमार से अटूट संबंध बनाए रखें। तब ना अंतिम बार 2005 के नवंबर में चुनाव हारने के बाद जब सूबे के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार बने तो उनके चेहरे पर अपने पराजय के सिकन से ज्यादा नीतीश कुमार के मुख्यमंत्री बनने की खुशी थी। नीतीश कुमार के मुख्यमंत्री पद के शपथ के घण्टों बाद ही 30 नवंबर 2005 को उमा बाबू सदा के लिए दुनिया छोड़ गए। उनके याद में उनके छोटे पुत्र प्रो विनय कुमार चौधरी ‘अजय’ ने अपने निजी कोष से उमा बाबू का प्रतिमा स्थापित किया है। जिसका 20 नवंबर को बिहार के मुखिया नीतीश कुमार स्वयं अनावरण करेंगे और उमा बाबू को याद करेंगे।
