पटना,संतोष कुमार झा । 2019 के आम चुनाव से ठीक पहले कांग्रेस ने प्रियंका गांधी को पार्टी महासचिव और पूर्वी उत्तर प्रदेश का प्रभारी बनाकर चुनावी जगत में हलचल और बेचैनी बढ़ा दी है। प्रियंका गांधी के चुनावी राजनीति मे प्रत्यक्ष पदार्पण से न सिर्फ बीजेपी जैसे विरोधी दल बल्कि महागठबंधन के अन्य दलों में भी खासी खलबली मची हुई है। जहाँ एक तरफ बीजेपी इसे राहुल गांधी की असफलता के तौर प्रचारित करने की कोशिश कर रही है वहीँ चुनावी रणनीतिकार और जदयू उपाध्यक्ष प्रशांत किशोर समेत वरिष्ट पत्रकार नीरजा चौधरी इसे कांग्रेस का मास्टर स्ट्रोक बता रहे हैं। हालांकि यह पार्टी का मास्टर स्ट्रोक है या नहीं इसका फैसला तो चुनाव परिणाम ही बतलाएगा बहरहाल राजस्थान, मध्य प्रदेश और छतीसगढ़ की चुनावी जीत राहुल गांधी का पार्टी अध्यक्ष के तौर पर एक सफल कार्यकाल ही माना जाएगा। प्रियंका गाँधी को पार्टी में एक अहम भूमिका देकर राहुल गाँधी ने अपनी राजनितिक परिपक्वता का तो परिचय दिया ही है, साथ ही साथ चुनावे के ठीक पहले लिया गया यह निर्णय निशित रूप से पार्टी में एक नयी ऊर्जा का संचार करेगा।
आखिर कांग्रेस पार्टी के लिए प्रियंका गाँधी क्यों है तुरुप का पत्ता ?
भारतीय चुनाव की विशेषता रही है कि यह मुद्दों के बजाए संवेदना और व्यक्ति केन्द्रित रही है। भाजपा को इसका फायदा 2014 के आम चुनाव में हुआ जहाँ प्रधानमन्त्री पद के उम्मीदवार नरेन्द्र मोदी अपने व्यक्तित्व के इर्द गिर्द और भारतीय जनमानस की संवेदनाओं को भुनाने मे सफल रहे। यहाँ भारतीय संवेदनाओं से आशय एक भ्रष्टाचार और मंहगाई विरोधी सरकार से है। नरेन्द्र मोदी जनता के इन इच्छाओं को वोट मे तब्दील करने मे सफल रहे। अब जबकि भाजपा सरकार अपने कार्यकाल के अंतीम चरण मे है तो मंहगाई और भ्रष्टाचार कम होने के बजाए बढ़ता ही दिख रहा है। अब इस तथ्य को जनता के बीच पंहुचाने के लिए एक ऐसे नेता की आवश्यकता है जिसे जनता सुनना चाहती हो। प्रियंका मे जहाँ इंदिरा गांधी की छवि देखि जा रही है वहीं वह एक “क्राउड पुलर” भी हैं, एक ऐसी नेता जिसे जनता सुनने और देखने को बेताब रहती है। नरेंद्र मोदी के मुकाबले प्रियंका को आगे कर कांग्रेस ने यह बता दिया है कि सरकार की नाकामियों को जनता के समक्ष बेहतर तरीके से आगामी चुनाव मे उठाने जा रही है .
जातीय और जेंडर परिपेक्ष्य
आज के चुनावी राजनीति मे जाती और जेंडर को नज़रंदाज़ नहीं किया जा सकता। उत्तर प्रदेश और बिहार जहाँ से 120 सदस्य चुनकर लोकसभा जाते हैं, इन प्रदेशों मे प्रियंका की उपस्थिति निश्चित ही कांग्रेस पार्टी मे नई जान डालने का काम करेगी। कारण स्पष्ट हैं, प्रियंका मे लोग इंदिरा गांधी की छवि देखते हैं और इस छवि का फायदा बिहार और उत्तर प्रदेश के ब्राह्मण मतदाता के साथ-साथ मुस्लिम और दलित मतदातातों पर भी पड़ने की पूरी संभावना है। इसके अलावा मायावती और ममता बनर्जी की मजबूत दावेदारी को भी प्रियंका के कार्ड से काटने की कोशिश कांग्रेस करने की कोशिश करेगी। यानी प्रधानमंत्री पद पर यदि राहुल के नाम की सहमती नहीं बनती है तो कांग्रेस प्रियंका के नाम का प्रस्ताव आगे कर सकती है।
परन्तु, इन सब फैक्टर से इतर प्रियंका गांधी का चुनावी राजनीति मे पदार्पण को 2019 लोकसभा चुनाव से परे होकर सोचने की जरूरत है. कांग्रेस के लिए प्रियंका की इंट्री एक दूरगामी राजनीतिक कार्ड साबित हो सकता है .
