दरभंगा में तीन दिवसीय मिथिला विभूति पर्व समारोह शुरू।

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दरभंगा। हर साल की तरह इस साल भी मिथिला विभूति पर्व समारोह खुशनुमा माहौल में मनाया जा रहा है। समारोह का शुभारम्भ बुधवार को सुबह 09 बजे शोभा यात्रा एवं महाराजा के प्रतिमाओं पर माल्यार्पण कर किया गया। इस शोभा यात्रा में परिसीमन यात्रा से लौटे आशीष चौधरी व मणि भूषण के नेतृत्व में सैकड़ों मैथिल सेनानियों ने भी अपनी सहभागिता दी। प्रसिद्ध शहनाई वादक बालेश्वर राम चौधरी की मंगलध्वनि के बीच मिथिला विभूति कवि विद्यापति व आचार्य सुरेन्द्र झा सुमन की प्रतिमाओं पर माल्यार्पण के साथ ही तीन दिवसीय महोत्सव की शुरुआत हो गई। स्थानीय एमएलएसएम कॉलेज परिसर में बने भव्य पंडाल व मंच की शोभा देखते ही बनी। अध्यक्षता एमएलएसएम कॉलेज के प्रधानाचार्य डॉ. विद्यानाथ झा ने की। कार्यक्रम का उदघाटन ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. सुरेन्द्र कुमार सिंह ने किया। उन्होंने कहा कि मैथिली बिहार की एकमात्र भाषा है जो संविधान के अष्ठम अनुसूची में शामिल है। इसकी पढ़ाई सूबे के सभी विश्वविद्यालयों में होनी चाहिए। सांसद कीर्ति आजाद ने कहा कि मैथिली और मिथिलाक्षर आज की भाषा नहीं है। मिथिला देश का उल्लेख तो वाल्मिकी ने किया है। झारखंड में मैथिली दूसरी राजभाषा बन चुकी है, बिहार में इसे पहली राजभाषा का दर्जा मिलना चाहिए। समारोह में नगर विधायक संजय सरावगी, विधायक अमरनाथ गामी, विधान पार्षद डॉ. दिलीप कुमार चौधरी, पूर्व विधान पार्षद डॉ. विनोद कुमार चौधरी, पूर्व विधान पार्षद मिश्री लाल यादव, संस्कृत विवि के सीसीडीसी डॉ. श्रीपति त्रिपाठी, डॉ. शशिनाथ झा समेत कई नेता, शिक्षाविद व शहर के गणमान्य मौजूद थे।

कार्यक्रम के शुरुआत के साथ ही सुरों की महफिल जो सजी तो देर रात तक दर्शक उसमें गोते लगाते रहे। मिथिला के एक से बढ़कर एक दिग्गज कलाकारों ने अपनी प्रस्तुतियों से मिथिला की प्राचीन सांस्कृतिक विरासत को मानों मंच पर ही जीवंत कर दिया। पंडित कमलाकान्त झा व मोहन महान के संचालन में बालेश्वर राम चौधरी, केदार कुमर, डॉ. ममता ठाकुर, अनुपमा मिश्र, डॉ. सुषमा झा, हरिद्वार प्रसाद खंडेलवाल, राकेश किरण झा, छाया कुमार, विभा झा, नीरज कुमार झा, प्रतिभा, प्रियंका कुमारी, नीतू कुमारी, ओम प्रकाश ¨सह, कृष्ण कुमार कन्हैया, सत्येंद्र कुमार, पारस पंकज, दीपक कुमार झा, रचना झा, पूनम झा, प्रभाष कुमार, रावी झा, मुस्कान मिश्रा, सुधीरा कुमारी, पवन नारायण आदि ने विद्यापति गीतों के साथ ही पारंपरिक गीत-संगीत से समां बांध दिया।

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