अब जो हो जाए, दूसरे राज्य में काम करने वापस नहीं जाएंगे

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दरभंगा। कोरोना महामारी से बचने के लिए प्रदेश से अपने गांव आए प्रवासियों को अब चटनी-रोटी रास आने लगी है, जो एक दशक पहले कमाई के लिए गांव छोड़कर महानगरों में चले गए थे। अब जब कोरोना महामारी से हुए परेशान, तो उन्हें अपनों की याद आई। अब ज्यादातर प्रवासियों का दूसरे प्रदेश से मोहभंग हो गया है। रोजगार के लिए दूसरे प्रदेश जाना और संकट के दौरान जद्दोजहद के बाद वापस लौटना उन्हें खल रहा है। अब वे गांवों में ही रहकर रोटी की जुगाड़ में लगे हैं। इसको लेकर पहल भी करने लगे हैं। इतना ही नहीं होली से पूर्व आए दूसरे प्रदेश से आए दर्जनों लोग भी लॉकडाउन के चलते अपने घर में ही लॉक हो गए हैं। कुछ ऐसी दास्तां प्रखंड के सहोड़ा गांव में दूसरे प्रदेश से आए दर्जनों लोगों की है। लॉकडाउन के चलते महानगरों की बंद हुई औद्योगिक इकाइयों के युवाओं और मजदूरों को गांव लौटने को मजबूर कर दिया है। लेकिन, रोजगार छूटने के चलते गांव लौटते ही युवाओं और मजदूरों को सपने को हकीकत में बदलने में जुटे हैं। लॉकडाउन में खेतीबाड़ी पर निर्भर इस गांव के मजदूरों की सोच बदल दी है। गांव के पढ़े-लिखे युवक ग्रामीणों को स्वच्छता के प्रति जागरूक कर रहे हैं। वहीं बच्चों को नैतिक शिक्षा का पाठ पढ़ा रहे हैं। वहीं कई लोग क्वारंटाइन की अवधि खत्म होने के बाद प्रवासी अब परिवार के साथ चटनी-रोटी व प्याज रोटी चाव से खाकर गांव की गोद में आनंद की अंगड़ाई ले रहे हैं। वहीं अपने गांव आए लोगों ने बताया कि अब जो हो जाए, लेकिन वो अब बाहर नहीं जाएंगे। गांव में ही रहकर खेतीबारी, सब्जी बेचने व अन्य रोजगार करेंगे। इधर, दिल्ली से आए कृष्णा राम ने बताया कि भले ही दो वक्त की रोटी कम मिले, अब जिदगी गांव में ही बिताएंगे। वे गांव में ही रहकर मजदूरी करेंगे। हैदराबाद से आए दुर्गेश कुमार पासवान ने बताया कि गांव लौटना उनके जीवन का सबसे बड़ा कष्ट था। अब वो गांव में ही खेतीबारी या मजदूरी करेंगे। दिल्ली से आए विश्वनाथ झा का कहना था कि अब गांव में ही रहकर नौकरी करेंगे। अगर, सरकार की ओर से मदद मिल जाए, तो सहूलियत होगी। अशोक पासवान का कहना था कि अब दूसरे प्रदेश नहीं जाना है। महानगरों में भटकने से अच्छा गांव के खेतों में मेहनत कर समृद्धि लाना है। गोविद पासवान, फूलो पासवान, भरत राम, विनोद पासवान का कहना था कि अब जो हो जाए घर पर ही रहकर रोजगार करेंगे।

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