राजनीतिक रणनीतिकार प्रशांत किशोर जी ने हाल ही में कहा कि बिहार से पृथक मिथिला राज्य नहीं बनना चाहिए। उनका तर्क था कि छोटे राज्य बनने से भी विकास हो जाए इसकी गारंटी नहीं है। उदाहरण के लिए उन्होंने झारखण्ड का नाम लिया। गौरतलब है कि 15 नवम्बर 2000 को झारखण्ड बिहार से अलग हुआ था। उससे पहले 1936 में ओडिशा बिहार से अलग होकर पूर्ण राज्य बना था। 2000 में ही मध्यप्रदेश से छत्तीसगढ़ और उत्तर प्रदेश से उत्तराखंड भी अलग हुआ था।
अब यहाँ समझने की जरुरत है कि क्या झारखण्ड और अन्य नव निर्मित राज्य की विकास दर पहले के मुकाबले बढ़ी है। निश्चित रूप से सभी राज्यों ने निरंतर विकास किया है। आज झारखण्ड में इंटरनेशनल स्टेडियम है ,कई मैच खेले जा चुके हैं। बिहार की हालत कितनी खराब है, किसी से छुपी नहीं है। हाल ही में सम्पन्न हुए कॉमनवेल्थ गेम्स में झारखण्ड की बेटियों ने भारत को गोल्ड मेडल दिलाया जबकि बिहार के किसी खिलाड़ी का चयन तक नहीं हो सका।
उद्योग के मामले में भी झारखण्ड बिहार से आगे है। साक्षरता दर में भी झारखण्ड बिहार से कहीं आगे है जबकि बिहार देश में सबसे निचले पायदान पर है। प्रति व्यक्ति आय में भी झारखण्ड बिहार से आगे है जबकि बिहार सबसे फिसड्डी है। बात महिला सुरक्षा की हो या कानून व्यवस्था की झारखण्ड ने बिहार से बेहतर ही कर के दिखाया है। तब है कि वांछित लक्ष्य तक नहीं पहुँच पाया है।
यह भी हमें ध्यान रखना चाहिए कि जब भी कोई नयी व्यवस्था बनेगी, उसके सुधार में वक्त तो लगता ही है। उत्तराखंड और छत्तीसगढ़ ने भी पहले के मुकाबले निरंतर प्रगति किया है। हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि झारखण्ड और छत्तीसगढ़ नक्सल प्रभावित क्षेत्र रहा है। हालाँकि आज दोनों राज्यों ने इस पर बखूबी नियंत्रण कर लिया है।
वहीं प्रशांत किशोर खुद ही यह भी कह रहे हैं कि अगले 10 साल भी बिहार की हालत सुधरने की गुंजाइश नहीं है। यानि कि अगली पीढ़ी का भविष्य भी बर्बाद होना तय है। वे भी दिल्ली, हरियाणा और पंजाब के चक्कर लगाते रहेंगे, वो भी दो वक्त की रोटी के लिए। उन्होंने खुद माना है कि बिहार बहुत पिछड़ा है और हालात दयनीय है । यही बात तो मिथिला के लोग भी कह रहे हैं कि जब बिहार खुद सुधार नहीं कर पा रहा है, वह मिथिला को क्या संभालेगा।
सच तो यह है कि मिथिला राज्य की मांग ने जैसे ही तूल पकड़ा है, बिहार के राजनीतिक दलों ,नेताओं और रणनीतिकारों के होश उड़ गए हैं। इन्हें अपनी दुकान बंद होती दिख रही है। अभी तक किसी को मिथिला की फ़िक्र नहीं थी, अचानक से प्रेम उमड़ पड़ा है।
जानकारी के लिए बता दूँ कि बिहार में 38 जिला है, जिसमें मिथिला में 24 जिला आता है। बाकि के 7-7 जिले मगध और भोजपुरी बेल्ट से है। इसी तरह बिहार की 12 करोड़ जनसंख्या में 8 करोड़ की बड़ी आबादी मिथिला से है, बाकि बिहार की आबादी केवल 4 करोड़ है। तो सच्चाई यह है कि मिथिला छोटा राज्य नहीं बल्कि देश के कई राज्यों से अपने क्षेत्रफल और जनसंख्या में भी बड़ा होगा।
बिहार में रह कर मिथिला के संसाधनों का बहुत दोहन हो गया, अब और बर्दाश्त नहीं करेंगे। बाकि बिहार में कुर्सी का खेल चलता रहे, उनकी विकास की पाठशाला उनको मुबारक़। मैथिल अपनी तक़दीर अब खुद लिखेगें। वर्षों से चली आ रही मिथिला राज्य की मांग का आंदोलन अब तब तक नहीं रुकेगा जब तक हम अपना अधिकार ले नहीं लेते। सभी मैथिल इस यज्ञ में अपने-अपने तरीके से आहूति दे रहे हैं।
सनद रहे कि प्रशांत किशोर खुद आरा जिला से आते हैं, जो की बिहार के भोजपुरी बेल्ट में आता है। शोषक वर्ग यह कभी नहीं चाहेगा कि शोषित वर्ग उसके पहुँच से बाहर हो जाय। यही हाल होता है भोजपुरी बेल्ट और मगध का, जब – जब मिथिला राज्य बनने की बात होती है।
रिपोर्ट : मनीष भारती
