दरभंगा: महानवमी की सुबह गुरुवार को शहर के प्रसिद्द कंकाली मंदिर के मुख्य पुजारी की हत्या के बाद कई तरह के सवाल उठ रहे हैं। स्थानीय लोगों का कहना है कि उक्त परिसर सहित शहर के कई हिस्सों में नशेड़ियों एवं गजेरियों का अड्डा बनता जा रहा है। शाम होते ही असामाजिक तत्वों एवं नशेड़ियों का जमावड़ा होना शुरू होता है। सूत्रों की माने तो नशा के साधनों में व्हाइटनर तक का भी खूब उपयोग किशोरों एवं युवाओं द्वारा किया जाता है। नशे की लत ही किशोरो एवं युवाओं में आपराधिक मानसिकता उतपन्न करने से सबसे बड़ा कारक बनता जा रहा है। शराबबंदी का ढोल पीटने वाली सरकार की गलत नीतियों के कारण शराब बंदी की धज्जियां जमकर उड़ना आम बात हो गयी है।
बताया जाता कि नशे के सेवन के पश्चात युवाओं में हिंसात्मक प्रवृति आती है। आपस मे साथ बैठकर नशा करने वाले भी किसी भी खुन्नस को लेकर आपस मे विवाद शुरू करते हैं। विवाद के बाद खेमेबाजी होती है। इसके बाद वर्चस्व की लड़ाई में अनावश्यक हिंसा का परिचय सामने आ जाता है। कभी कभी हिंसा का वृहत परिणाम सामने आ जाता है।
ऐसे में एक बड़ा सवाल पुलिस के इंटेलिजेंस और एक्शन पर उठता है। शहर में ऐसे कई जगह हैं जहां नशा का सेवन करने का अड्डा बन जाने की जानकारी आमजनों को रहती है तो क्या पुलिस को नही रहती! आमलोग नशेड़ियों से डरकर उनसे विवाद मोल नही लेना चाहते, तो क्या पुलिस को भी यही डर होता है!
शराब के व्यवसाय में पकड़ाने वाले कारोबारी जमानत पर निकलते ही पुनः कारोबार शुरू करते हैं और फिर पकड़ाते छूटते रहते हैं। इसका अर्थ साफ है कि उन्हें पकड़े जाने का डर नही होता, बल्कि सिस्टम से तालमेल बिठा कर काम करना सीख लेते हैं। ऐसे में शराबबंदी की नीति पर भी सवाल उठना लाजिमी है।
कानून के पहरेदारों की मजबूरी या लाचारी, जो समझें, पर यह बात भी किसी से छिपी नही है कि रसूखदार पद एवं कद वाले भी शराब का खूब सेवन करते हैं, पर पकड़े नही जाते हैं।किसी पुलिस पदाधिकारी ने किसी रसूखदार को पकड़ने की कोशिश की तो फिर तुरंत नेताओं से लेकर बड़े बड़े मीडिया घराने के प्रतिनिधियों का दवाब एवं पैरवी आना शुरू हो जाता है। किसी न किसी कमजोरी से सब घिरे होते हैं। अतः बड़े नेताओं एवं पत्रकारों की नाराजगी मोल नहीं लेना चाहते। इस प्रकार नशेड़ी एवं नशा के कारोबारियों का संरक्षण भी सिस्टम में निहित हो जाता है।
ऐसा कहा जाता है कि पुलिस एवं प्रशासन समाज का ही प्रतिरूप होता है। जैसा समाज, वैसा ही प्रतिनिधि एवं पुलिस प्रशासन। अगर ऐसा है तो इसके समाधान केलिए समाज की सोच को बदलना पहले जरूरी है। समाज को बचाने केलिए अभिभावक वर्ग को पहले पूरी तरह स्वयं को नशा से दूर कर युवाओं को सकारत्मक संदेश देना होगा। इसके पश्चात किशोरों एवं युवाओं को इसके दुष्परिणाम से परिचित कराकर नशे से दूर रहने केलिए जागरूक करना होगा। साथ ही पुलिस प्रशासन से तालमेल बिठाकर आवश्यकता पड़ने पर सख्ती भी दिखानी होगी। प्रशासनिक अधिकारियों को भी समाज निर्माण की सोच के साथ आमलोगों के साथ तालमेल बिठाना होगा और उन्हें विश्वास में लेना होगा। कुल मिलाकर कहा जाय तो समाज एवं प्रशासन द्वारा संयुक्त रूप से बेहतर तालमेल बिठाकर कार्य किया जाय तो शायद नशे की लत एवं नशा के कारोबार पर काबू पाया जा सकता है।
सभार: तत्सम वार्ता
