ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय में अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस कार्यक्रम का आयोजन।

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दरभंगा, निशान्त झा। ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय में सोमवार को अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस विश्वविद्यालय हिन्दी , मैथिली , संस्कृत और उर्दू विभाग के संयुक्त तत्त्वावधान में मनाया गया, जिसकी अध्यक्षता कुशल प्रशासक एवं कुलपति प्रो.(डॉ.) सुरेन्द्र प्रताप सिंह ने की।
अध्यक्षीय वक्तव्य देते हुए कुलपति ने कहा कि सामान्य रूप से साहित्य के लोगों से अपेक्षा की जाती है कि जो बोलेगा वही लिखेगा। भाषा और बोली के महत्त्व पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने कहा कि भारत भाषिक विविधता वाला देश है। विभिन्न भाषाओं का समन्वय राष्ट्र के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। मातृभाषा आधुनिक संस्कार की संवाहक है, इसके बिना ज्ञान, विज्ञान और संस्कृति की कल्पना नहीं की जा सकती। मातृभाषा हममें राष्ट्रवाद की भावना को उद्वेलित करती है। मातृभाषा नैसर्गिक रूप से हमारी आत्माभिव्यक्ति का विस्तार करती है। साथ ही कुलपति महोदय ने मानविकी संकायाध्यक्ष प्रो. रमण झा के स्वागत गान की प्रशंसा की। इस क्रम में प्रति कुलपति प्रो. डॉली सिन्हा ने अपने उदबोधन में मातृभाषा की उपयोगिता पर विस्तार से चर्चा की। डॉ सिन्हा ने मातृभाषा को तकनीकी व रोजगारोन्मुख बनाने की बात कही। साथ ही विलुप्त हो रही मातृभाषा पर भी चिंता जाहिर की। उन्होंने कहा कि यूनेस्को के द्वारा भी यह बात कही जाती है कि मातृभाषा को समृद्ध किए बिना राष्ट्र का विकास नहीं हो सकता है। इसी क्रम विश्वविद्यालय के कुलसचिव प्रो. मुश्ताक अहमद ने कहा कि मातृभाषा मां के सीने की धड़कन होती है, इसलिए दुनिया में मातृभाषा की अहमियत रही है। भाषा की विविधता की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि भारत में चार सौ भाषाएं विलुप्त होने के कगार पर हैं, जिनमें अधिकांश आदिवासी भाषाएँ सम्मिलित हैं। मातृभाषा की विविधता एक-दूसरे के बाधक नहीं,बल्कि पूरक हैं। स्वागत भाषण मानविकी संकायाध्यक्ष प्रो. रमण झा ने किया तथा कुलपति के सकारात्मक कार्य की सराहना करते हुए मातृभाषा पर विस्तार से चर्चा की। प्रो. नारायण झा के कुशल संचालन में कार्यक्रम संपन्न हुआ। इस मौके पर कवि सम्मेलन एवं वाद-विवाद प्रतियोगिता भी संपन्न हुई। डॉ. कृष्णकांत झा, संस्कृत विभाग, प्रथम कवि के रूप में ‘ जहां डाल- डाल पर सोने की चिड़ियाँ ‘ गीत का संस्कृत अनुवाद करके कविता पाठ किया। हिंदी के सहायक प्राध्यापक डॉ. अखिलेश कुमार, विश्वविद्यालय हिंदी- विभाग ने मातृभाषा दिवस के अवसर पर ‘क्यों’ शीर्षक कविता का पाठ किया।

हिंदी भाषा के दूसरे कवि डॉ. दीपक दास ने ‘मेरी भाषा’ कविता का पाठ किया। मैथिली भाषा के कवि डॉ. दमन कुमार झा ने कविता का पाठ किया। उर्दू विभागाध्यक्ष एवं उर्दू के मशहूर कवि प्रो. मो० आफताब असरफ कवि के रूप में ‘तुम भी जिओ मैं भी जिऊं’ शेर से शुरुआत की और कई ग़ज़लें भी प्रस्तुत कीं। कवि के संग गीतकार, कथाकार प्रो. अशोक कुमार मेहता ने ‘ फागुन माह’ के गीत गाये। उर्दू विभाग की छात्रा सबाहत फातमा, संस्कृत विभाग की छात्रा रूपबाला, मैथिली विभाग के छात्र पवन कुमार महतो, हिंदी विभाग की छात्रा स्नेहा कुमारी,छात्र दीपक कुमार, संस्कृत विभाग की छात्रा रानी कुमारी, मैथिली विभाग की शोधप्रज्ञा शालिनी कुमारी तथा उर्दू विभाग की छात्रा बतूल फातमा ने वाद-विवाद प्रतियोगिता में भाग लिया। इसके अलावे शोधार्थी एवं विद्यार्थीगण ने भी भाग लिया। विजेता के रूप में प्रथम स्थान स्नेहा कुमारी हिंदी विभाग, द्वितीय स्थान रानी कुमारी संस्कृत विभाग तथा तीसरे स्थान पर सबाहत फातमा रहीं। इस मौके पर विश्वविद्यालय हिंदी विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो. राजेन्द्र साह, संस्कृत के विभागाध्यक्ष प्रो. जीवानंद झा, अंग्रेजी के विभागाध्यक्ष डॉ. ए. के. बच्चन, उर्दू विभागाध्यक्ष डॉ. आफ़ताब अशरफ तथा हिंदी के पूर्व विभागाध्यक्ष प्रो. चंद्रभानू प्रसाद सिंह सहित शोधार्थी एवं विद्यार्थी उपस्थित थे।

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