बिहार की लचर शिक्षा व्यस्था पर क्यों चुप हैं बिहार सरकार, पढ़िए सोमू कर्ण की विशेष आलेख

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सोमू कर्ण की विशेष आलेख।

सरकारी विद्यालयों की क्या है स्थिति
बिहार की प्राथमिक शिक्षा व्यवस्था की बात करें तो शिक्षा व्यवस्था में नाम मात्र वृद्धि हुई है। बिहार की शिक्षा व्यवस्था इतनी लचर स्थिति में गुजर रही है कि यहां से बड़ी शिक्षा प्राप्त करना बिल्कुल कठिन हो गया है। प्राथमिक सरकारी विद्यालय की ओर अगर ध्यान दें तो हम देखतें हैं कि यहां 75 फीसदी विद्यालयों में छात्रों को बैठने के लिए बेंच डेस्क अभी भी उपलब्ध नही हो पाई है। यहां कार्यरत शिक्षक ठीक से हिंदी, विज्ञान और गणित भी नही पढा पातें हैं। बिहार सरकार इन छात्रों के लिए कुछ हद्द तक काम की है लेकिन जो जरूरी चीजें है उस ओर बिहार सरकार की नजर अभी तक नही गयी है। बिहार सरकार छात्रों के लिए कपड़े के तौर पर हर वर्ष ड्रेस उपलब्ध कराती है, भोजन के लिए मिड्डे मिल की व्यवस्था की है, लेकिन क्या भोजन और कपड़े से उनके शिक्षा स्तर को बढ़ा सकतें हैं? शिक्षा के स्तरों को बढ़ाने के लिए बैठने की सुविधा, सभी सरकारी विद्यालयों में अच्छे शिक्षकों की बहाली होना अति आवश्यक है। लेकिन बिहार के 40 फीसदी विद्यालयों में अभी भी शिक्षकों की कमी है। कई ऐसे विद्यालय हैं जहां 3-3 कक्षाएं एक साथ चलती हैं, जहां तीनों वर्ग के छात्रों को एक साथ पढा पाना बिल्कुल असंभव है। प्राथमिक विद्यालयों में अभी भी ऐसे शिक्षक हैं जो न ही समय पर पहुंच पातें हैं और न ही छात्रों को ठीक ढंग से पढ़ा पातें हैं।
एक तरफ जहां बिहार सरकार अपने विकास पुरूष होने का दावा कर रहें वहीं दूसरी तरफ शिक्षा की लचर स्थिति उन्हें विकास पुरुष होने के दावा को फीका कर रही है।

क्या है निजी विद्यालयों की स्थिति

बिहार की सरकारी विद्यालयों की स्थिति देखकर अभिवावक अपने बच्चों का नामांकन अच्छे निजी विद्यालयों में करवातें हैं, जहां उन्हें अच्छी शिक्षा की उम्मीद होती है, लेकिन क्या उन अभिवावकों की यह उम्मीद पूरी हो पाती है? बीते कुछ वर्षों की बात करूं तो निजी विद्यालयों ने ये एजेंडा अपनाया है कि छात्र उनके विद्यालय में हर वर्ष पुनः नामांकन करवाएंगे, क्या यह एजेंडा कतई उचित है? पहले की निजी विद्यालयों की शिक्षा नीति ये थी कि अगर किसी छात्र का नामांकन एक हो गया तो उन्हें पुनः नामांकन नही करवाना पड़ेगा।
क्या हर वर्ष बदल जाती है सिलेबस
क्या सीबीएसई और आइसीएसइ में हर वर्ष सिलेबस बदल जाती है कि गरीब छात्रों को भी महंगी-महंगी किताबे हर वर्ष खरीदनी पड़ती है। गरीब अभिवावक के बच्चे न ही सरकारी विद्यालय में शिक्षा प्राप्त कर पातें हैं और न हीं निजी विद्यालय में महंगाई के कारण अच्छी शिक्षा प्राप्त कर पातें हैं। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार हर कार्यक्रम और जनसभा में बिहार की विकास बात करतें हैं, लेकिन बिहार की शिक्षा व्यस्था पर एक बार भी नही चर्चा करतें हैं।

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