जन्मदिन विशेष: मिथिला की पहचान ललित बाबू की याद आज भी लोगों की जेहन में है विद्यमान

0

न्यूज ऑफ मिथिला डेस्क । 1922 में सुपौल(तब सहरसा) के बासोपट्टी में आज के ही दिन 2 फ़रवरी(बसंत पंचमी) के दिन हुआ था ललित बाबू का जन्म , मिथिला की लिख दी थी तकदीर।

3 जनवरी का वह मनहूस दिन जो आज भी लोगों के जेहन में है जब मिथिला के विकास पुरुष ललित बाबू की मृत्यु हो गई थी। इतने वर्ष बीत जाने के बाद भी आज भी मिथिला की पहचान ललित बाबू से होती है। मिथिला का जो ख्वाब था इनके चले जाने से ही खो गया। आज मिथिला में गरीबी, बेरोजगारी और पलायन की स्थिति है। ललित बाबू का सपना आज भी अधूरा है जो इन्होंने मिथिला के स्वर्णिम विकास के लिए देखा था। 2 जनवरी 1975 को समस्तीपुर स्टेशन पर उस समय के इंदिरा गांधी के बाद देश के सबसे कद्दावर नेता और रेल मंत्री रहे ललित नारायण मिश्र बम धमाके में घायल हुए थे और 3 जनवरी ही के दिन दानापुर के रेलवे अस्पताल में इनकी मृत्यु हो गई थी।आज भी लोग इनकी मौत को राजनीतिक साजिश मानते है । तब इंदिरा गांधी ने इनकी मौत को विदेशी साज़िश का नाम दिया था । इनकी हत्या के आरोपियों को सुप्रीम कोर्ट ने करीब 40 साल बाद 8 दिसंबर 2014 को चार आरोपियों को सजा सुनाई थी। इस फैसले पर आज भी लोगो के बीच संशय और विवाद है।

1952 में पहली बार ललित नारायण मिश्र पहली बार दरभंगा सहरसा संयुक्त लोकसभा में सांसद चुन कर गए थे। कोसी के लाल होने के कारण कोशी नदी के रूप को अच्छी तरह समझते थे। हर साल कोशी नदी अपने तांडव से सब कुछ अपने साथ ले जाती थी। इन्हीं के प्रयासों से कोसी परियोजना को मंजूरी मिली । 1954 से 56 तक कोसी परियोजना के सर्वे सर्वा रहे। कोसी की धरती पर पंडित जवाहर लाल नेहरू और नेपाल के तत्कालीन महाराज महेंद्र विक्रम शाह देव ने कोसी पर बराज बनवाकर कोशी नदी के वेग को कम किया। कोशी नदी की विभीषिका की और देश का ध्यान आकृष्ट कराते हुए कोसी परियोजना के लिए 150 करोड़ की राशि पंडित जवाहर लाल नेहरू से स्वीकृत कराई थी।

रेलमंत्री रहते हुए ललित बाबू ने लिखा था मिथिला का भाग्य, मिथिला पेंटिंग ललित बाबू के सपने की देन है।

आज स्टेशनों और ट्रेनों में जो मधुबनी की प्रसिद्ध मिथिला पेंटिंग से सजी हुई है। बहुत कम लोगों को मालूम है की रेलवे में सबसे पहले मिथिला पेंटिंग का इस्तेमाल ललित बाबू ने करवाया था। समस्तीपुर से दिल्ली जाने वाली रेलगाड़ी जयंती जनता एक्सप्रेस की बोगियों को मिथिला पेंटिंग से सजवाया था और कई स्टेशनों पर मिथिला पेंटिंग उकेरी गई थी। 1973 में रेलमंत्री रहते हुए अपने पिता के वचन( कोशी में रेल) को निभाने का प्रण लिया था। रेल मंत्री रहते हुए उन्होंने समस्तीपुर दरभंगा रेल लाइन का पुनर्निर्माण, भपटियाही फारबिसगंज , झंझारपुर लोकहा , कटिहार रेल लाइन समेत 36 रेल लाइन की स्वीकृति दिलाई थी। मानसी सहरसा फारबिसगंज, जयनगर सीतामढ़ी रेल लाइन का सर्वेक्षण करवाया था।, सहरसा महेसी होते कुशेश्वरस्थान तक रेल लाइन बिछाने का इनका एक सपना था जो आज भी अधूरा है।

मिथिला का किया था निर्माण, दरभंगा और कोशी प्रमंडल का निर्माण कराया और भी बहुत कुछ

अपने राजनीतिक जीवन में इन्होने वह काम कर दिया जो आज हमारे लिए मिशाल है। ललित बाबू ने कोसी और दरभंगा प्रमंडल का निर्माण करवाया। मिथिलांचल विश्वविधालय की स्थापना की। कोशी बराज का निर्माण, पूर्वी और पश्चिमी कोशी नहर का निर्माण, दरभंगा और पूर्णिया में वायुसैनिक हवाई अड्डा, मिथिला पेंटिंग की अन्तर्राष्ट्रीय पहचान ,रेल कारखानों का राष्ट्रीयकरण, अशोक पेपर मिल का निर्माण, कटैया जल विद्युत गृह , कोशी नदी के बाढ़ से ध्वस्त रेल लाइन का पूर्ण निर्माण शामिल है।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here